पंजाब यूनिवर्सिटी की 59 साल पुरानी सीनेट भंग करने पर राजनीतिक उबाल

अरशद खान: केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (BJP) सरकार द्वारा एक आधिकारिक अधिसूचना (Notification) जारी करके पंजाब विश्वविद्यालय (Panjab University – PU) की 59 साल पुरानी सीनेट और सिंडिकेट को तत्काल प्रभाव से भंग करने के फैसले ने पंजाब की राजनीति में भूचाल ला दिया है. यह आदेश 28 अक्टूबर को जारी हुआ था और 5 नवंबर से प्रभावी होगा.

क्या है केंद्र का फैसला और विरोध का आधार:

कानूनी कदम: केंद्र सरकार ने पंजाब विश्वविद्यालय अधिनियम, 1947 में संशोधन करते हुए यह फैसला लिया है. इसके तहत, स्नातक निर्वाचन क्षेत्र को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है, और सीनेट की ताकत 90 सदस्यों से घटाकर सिर्फ 31 कर दी गई है.

लोकतंत्र पर हमला: पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान और शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस (आप) ने इस कदम को ‘अवैध’, ‘तानाशाही’ और ‘पंजाब की गौरवशाली विरासत पर सीधा हमला’ बताया है.

असंवैधानिक आरोप: ‘आप’ और शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय अधिनियम पंजाब विधानसभा द्वारा बनाया गया था, इसलिए केंद्र सरकार केवल एक प्रशासनिक नोटिफिकेशन जारी करके इसे भंग या मौलिक रूप से बदल नहीं सकती. अकाली दल ने इसे ‘तुगलकी फरमान’ करार दिया है.

नियंत्रण का आरोप: विपक्ष का आरोप है कि केंद्र सरकार इस कदम के जरिए निर्वाचित सदस्यों की जगह मनोनीत सदस्यों को लाकर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक ढांचे पर सीधा नियंत्रण स्थापित करना चाहती है, जिससे पंजाब का नियंत्रण समाप्त हो जाएगा और अकादमिक स्वतंत्रता भंग होगी.

विभिन्न राजनीतिक दलों, शिक्षकों और छात्रों ने इस फैसले का कड़ा विरोध करते हुए, इसके खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक मंचों पर लड़ाई लड़ने की चेतावनी दी है.

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