दहेज की भूख ने छीनी बेटी की खुशियां: बारात नहीं आई, हाथों की मेहंदी रह गई सूनी

महेश्वरी जट, बिजनौर: 25 मई की तारीख, एक ऐसा दिन जो एक बहन के लिए उसकी ज़िंदगी का सबसे खास दिन होना चाहिए था, लेकिन आज वह दिन उसके जीवन का सबसे दुखद दिन बन गया. उत्तर प्रदेश के कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के ग्राम महेश्वरी जेट से एक ऐसा मामला सामने आया है जहाँ बारात ऐन वक्त पर नहीं आई. कारण? दहेज में कार की मांग.

जब किसी बेटी की शादी का दिन हो, घर में टेंट लग चुका हो, खाना बन चुका हो, मेहमान पहुंच चुके हों और बारात का इंतज़ार हो रहा हो — तभी सूचना मिले कि लड़के वालों ने शादी से इनकार कर दिया है. ऐसा ही एक हृदयविदारक मामला शनिवार को कोतवाली देहात थाना क्षेत्र के ग्राम महेश्वरी जेट में सामने आया.

इस गांव में एक परिवार ने अपनी बेटी की शादी के लिए महीनों से तैयारियां की थीं. शनिवार, 25 मई को बारात आनी तय थी. लड़की पक्ष ने पूरी तैयारी कर ली थी – खाने-पीने का इंतज़ाम, टेंट, मेहमानों की आवभगत, सब कुछ. लेकिन ऐन वक्त पर बारात नहीं आई.

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लड़के वालों ने दहेज में मांगी कार

लड़की के भाई मोहम्मद सरफराज के अनुसार, “हमने रिश्ता तय करते वक्त ₹3.5 लाख कैश और ₹1.5 लाख दहेज में दिए थे. चिट्ठी बंदी में 25 मई की तारीख तय की गई थी. लेकिन अब वो कह रहे हैं कि जब तक कार नहीं दोगे, बारात नहीं लाएंगे.”

सुबह मिली सूचना, पर उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा

परिवार को शनिवार सुबह यह खबर मिली कि बारात शायद न आए. इसके बावजूद वे उम्मीद करते रहे. लड़की की मां और पिता ने बार-बार फोन कर लड़के पक्ष से बात की, लेकिन हर बार सिर्फ एक ही जवाब मिला – “थोड़ा और इंतजार कीजिए.” और इंतज़ार करते-करते पूरा दिन बीत गया, लेकिन बारात नहीं आई.

रिश्तेदारी से ही तय हुआ था रिश्ता

शादी का रिश्ता लड़की के मामू के ससुर की तरफ से तय हुआ था. उन्होंने भी पूरे प्रयास किए, लेकिन जब बारात रवाना होने का समय आया, तब लड़के वालों ने साफ शब्दों में कह दिया – “जब तक कार नहीं मिलेगी, शादी नहीं होगी.”

गांव में मायूसी का माहौल

गांव में यह खबर फैलते ही हर किसी की आंखें नम हो गईं. जो मेहमान आए थे, वे भी स्तब्ध रह गए. सबने लड़की और उसके परिवार के साथ सहानुभूति जताई.

प्रशासन से की न्याय की गुहार

परिवार अब प्रशासन और समाज से न्याय की उम्मीद कर रहा है. उन्होंने कहा, “हमारी बेटी के सम्मान के लिए हम लड़ाई लड़ेंगे. यह सिर्फ हमारी नहीं, हर बेटी की लड़ाई है.”

गौरतलब है कि यह मामला एक बार फिर समाज को सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर कब तक बेटियों की खुशियाँ दहेज की मांग में कुचली जाती रहेंगी? कानून तो है, लेकिन क्या उसका डर है?

नोट: खबर स्थानीय लोगों की जानकारी के अनुसार प्रसारित की गई है।

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