CAA in India: क्या पश्चिम बंगाल और केरल में नहीं लागू हुआ CAA! जानिए नियम ?

अरशद खान: लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी ने वोट बैंक की राजनीति का एक और बड़ा दांव खेल दिया है. जी हां पूरे देशभर में गृह मंत्रालय की ओर से CAA यानी कि नागरिक संहिता कानून लागू कर दिया गया है. जहां एक और भारतीय जनता पार्टी के समर्थक इसे भारत सरकार और भाजपा का क्रांतिकारी फैसला बता रहे हैं. तो वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल लगातार बीजेपी पर हमलावर होते हुए नजर आ रहे हैं. आरोप प्रत्यारोप की राजनीति के बीच बड़ी खबर यह है देश के दो राज्य पश्चिम बंगाल और कर्नाटक में CAA लागू नहीं हुआ है. दरअसल 2019 में इस कानून को संसद में पास कर दिया गया था लेकिन उसके बाद से अब तक 4 साल बीत चुके हैं भारतीय जनता पार्टी ने इसे ठंडे बस्ते में डाल रखा था. अब लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर इस मुद्दे को राजनीति की गरमाहट दी गई है और देशभर में इसे लागू कर दिया गया.

इसलिए पश्चिम बंगाल और केरल में नहीं लागू हुआ CAA

देश के दो राज्यों ने नागरिक संहिता कानून को लेकर टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि इस कानून की वजह से किसी की नागरिकता छीनी जाती है तो वह इसे लागू नहीं करेंगे. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तो यहां तक कहा कि ये बंगाल है और हम यहां CAA लागू नहीं करेंगे. जरूरत पड़ने पर हम इसका कड़ा विरोध भी करेंगे. वहीं केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का कहना है कि हम ऐसे सीएए को लागू नहीं होने देंगे जो मुस्लिम समुदाय को दोयम दर्जे में रखता है. यही वजह है कि इन दोनों राज्यों में CAA लागू नहीं हुआ.

क्या राज्य सरकार रोक सकती है CAA

लेकिन कानून और संविधान कहता है कि देश में कानून बनाने का हक संसद का है. यानी कि जो कानून संसद में बनाए जाते हैं तो उनमें राज्य सरकार मनाही नहीं कर सकती है. कुल मिलाकर कुछ विषय ऐसे हैं जिनमें केंद्र सरकार कानून बनाने का हक रखती है, और कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनमें राज्य सरकार कानून (caa in India) बनाने का हक रखती है. वहीं कुछ विषय ऐसे भी हैं जिनमें राज्य और केंद्र सरकार दोनों ही कानून बनाने का हक रखती हैं लेकिन इनमें यदि कानून केंद्र सरकार बनती है तो राज्यों के पास उसे मानने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है. सीएए नागरिकता का विषय है जो कि केंद्र सरकार के अधीन आता है. इसलिए अब राज्य सरकारों के पास इसकी मनाही का कोई विकल्प नहीं है.

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