अरशद खान/ देहरादून: नाम के आगे कट्टर ईमानदार और भ्रष्टाचार विरोधी नारे के साथ अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की कुर्सी से इस्तीफा दे दिया है। ये बात सिर्फ एक सीएम का अपने राज्य के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने तक सीमित नहीं है। बल्कि DELHI MODEL के सपने पर भी गम के बादल हैं।
- जन्म 16 अगस्त 1968, सिवानी, हरियाणा
- 1985 में IIT-JEE की परीक्षा पास की
- 1989 में 3 साल टाटा स्टील में नौकरी की
- 1992 में नौकरी से रिजाइन किया
- 1995 में UPSC क्लियर किया और IRS की नौकरी मिली
- 2006 में अपनी IRS की नौकरी से भी इस्तीफा दे दिया
यहीं से शुरू होती है एक ऐसे नाम की असली कहानी जो इतिहास के पन्नों में लिखे जाने के लिए संघर्ष की भट्टी में तपने को तैयार था। दिल्ली के तीन बार के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल।
देश सेवा और समाज में बेहतर सुधार के उद्देश्य के साथ अरविंद केजरीवाल ने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करना शुरू कर दिया। 2011 में जन लोकपाल विधेयक की मांग को लेकर इंडिया अगेंस्ट करप्शन ग्रुप बनाया।
- 24 नवंबर 2012 को आम आदमी पार्टी AAP बनाई
- 2013 में सरकार बनाई और पहली बार मुख्यमंत्री बने
इस चुनाव में अरविंद केजरीवाल को बहुमत नहीं मिला लेकिन कांग्रेस ने सरकार में शामिल होने से मना किया और अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली।
साल 2015 का दिल्ली विधानसभा चुनाव अरविंद केजरीवाल नाम के उस उदय का परिणाम था जिसकी शाम अनंत हो रही थी। आम आदमी पार्टी को 67 सीटों पर प्रचंड जीत मिली और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बने।
2020 के विधानसभा चुनाव में राजनीति के परिपक्व गुण दिखाते हुए अरविंद केजरीवाल ने अपने काम पर वोट मांगे। काम भी ऐसा जो भारत की जनता ने आजादी के बाद से कभी देखा ही नहीं था। सरकारी स्कूलों का कायाकल्प, मुफ्त बिजली-पानी, मुफ्त बस यात्रा जैसी योजनाएं अरविंद केजरीवाल के लिए चुनाव में वोट बैंक का काम कर गईं और एक बार फिर 70 में से 62 सीटों के साथ अरविंद केजरीवाल दिल्ली में अजय बनें।
2020 के बाद से ही दिल्ली सियासी जमीन में गढ़े अरविंद केजरीवाल के पांव को उखाड़ने के लिए बड़े राजनीतिक दलों ने अरविंद केजरीवाल पर हमलावर होना शुरु कर दिया। उनकी काम की राजनीति और मुफ्त मॉडल को लेकर उन पर निशाने साधे जाने लगे। अभी तक का सबसे बड़ा झटका यदि अरविंद केजरीवाल के राजनैतिक सफर में देखा जाए तो वो दिल्ली का शराबनीति मामला है। जिसमें एक के बाद एक अरविंद केजरीवाल के पहले सिपाहसालार औऱ फिर खुद अरविंद केजरीवाल इस दलदल में फंसते चले गए। एक साल बीता, दूसरा साल बीता लेकिन अरविंद केजरीवाल सरकार की मुश्किलें बढ़ती रहीं । उनके सारे करीबियों को एकाएक जेल के दर्शन करने पड़े हालांकि शुरु से ही अपनी ईमानदारी के लिए पहचाने जाने वाले अरविंद केजरीवाल अपनी बात पर अड़े रहे औऱ अपने विपक्षी दल व जांच एजेंसियों पर भारी पड़े। आखिरकार जेल एक अपवाद है और बेल कैदी का अधिकार है ये बात सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेंसियों को समझाई और अरविंद केजरीवाल के साथ-साथ उनके सभी साथियों कोर्ट से जमानत मिली ।
2013 का वो इंकलाबी नारा लेकिन कोर्ट की जमानत से संतुष्ट नहीं हुआ और अपनी प्रचंड बहुमत की सरकार होने के बाद अपनी स्वैच्छा से मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया । अब अरविंद केजरीवाल की ईमानदारी और गुनहगारी का फैसला जनता की अदालत में है।