डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट/ रुड़की:
मां
पहली बार जब मां देखी
तब मेरा वजूद न था,
सांसो और रुदन के अलावा
मेरा कोई शोर न था,
मेरे लिए असहनीय पीड़ा
मेरी मां ने झेली थी,
मुझे धरा पर लाने को
उसने परेशानियां सह ली थी,
मेरी एक मुस्कान की खातिर
रतजगा वह करती थी,
मैं बिस्तर गीला करता
वह उस पर सो जाती थी,
छींक मुझे गर आ जाती
माँ डर से सहम जाती थी,
घुटनो के बल मुझे चलाती
खुद पूरी झुक जाती थी,
मुझे भरपेट खिलाने को
मां भूखी रह जाती थी,
मेरी ख्वाहिश से अपने सपने
मां पूरे कर लेती थी,
बड़ी से बड़ी बीमारी को
वह अपने अंदर समा लेती,
दर्द चेहरे पर न लाकर
मैं ठीक हूँ, वह बता देती,
माँ नही देवी थी वह
जो सदा हित ही चाहती थी,
सदा सुखी रहो मेरे बच्चों
दिल से वो यह कहती थी,
इस जहान से चली गई माँ
एहसास उसका आज भी है,
दुनिया की सारी दौलत फीकी
बस, माँ का होना लाज़मी है,
कमबख्त है वे दुनिया मे
जिन्हें माँ की कद्र नही,
जिसने माँ को कष्ट दिया
उसके जीवन मे चैन नही,
परमात्म कृपा अगर चाहिए
माँ का दिल से सम्मान करो,
जीवन सफल हो जाएगा
परमात्मा का ध्यान धरो.